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घरेलू बाजार के खराब रिटर्न के बाद आप अंतरराष्ट्रीय मार्केट में निवेश कर सकते हैं लेकिन इसका सही तरीका क्या है?

हमने 2019 में मॉर्निंगस्टार सम्मेलन में एक प्रेजेंटेशन दी जिसने निवेशकों के बीच काफी हलचल पैदा कर दी थी। प्रेजेंटेशन का विषय यह था कि भारतीय इक्विटी बाजार ने पिछले 10, 5, 3 और 1 वर्ष की अवधि में बेहद निराशाजनक रिटर्न दिए हैं ।
 
2010 से अब तक, डॉलेक्स (अमेरिकी डॉलर में सेंसेक्स) 6% नीचे है। इसका मतलब है कि अमेरिकी डॉलर में भारतीय बाजारों ने पिछले 10 साल में नेगेटिव रिटर्न दिया है। 

 2019 के आंकड़े भी चौंकाने वाले हैं।

 

देश

2019 (USD में)

रूस

44.9%

नैस्डैक 100 Nasdaq 100

38.0%

एस एंड पी500 S&P 500

28.8%

स्विट्जरलैंड

28.1%

ब्राज़ील

26.9%

ताइवान

25.9%

इटली

25.7%

फ्रांस

23.9%

जर्मनी

23.0%

एम्स्टर्डम

21.5%

चीन

20.8%

   NIKKEI (जापान)

19.8%

बेल्जियम

19.6%

ऑस्ट्रेलिया

18.1%

  FTSE (इंग्लैंड)

16.7%

दक्षिण अफ्रीका

11.9%

तुर्की

11.5%

थाईलैंड

9.7%

हॉगकॉग

9.7%

स्पेन

9.6%

भारत निफ्टी Nifty

9.5%

बाकी बाजारों की बात छोड़ भी दें, तब भी यह बात ध्यान देने लायक है कि तुर्की जैसे बाजार ने भी भारत से बेहतर प्रदर्शन किया। इससे भी ज्यादा चौंका देने वाली बात यह है कि FD और बॉन्ड जैसे दुनिया भर के फिक्स्ड रिटर्न देने वाले प्रोडक्ट्स ने भी भारत के शेयर बाजार से ज्यादा रिटर्न दिया।

इन डेटा से इमर्जिंग मार्केट और खासकर भारतीय निवेशकों के लिए एक बात साफ हो गई कि एक देश, एक मुद्रा, एक एसेट का रिस्क लॉन्गटर्म रिटर्न और रिस्क मैनेजमेंट के लिए ठीक नहीं है। लिहाजा इंटरनेशनल डायवर्सिफिकेशन यानी अमेरिकी या यूरोपीय बाजारों में निवेश बढ़ा है। लेकिन दुर्भाग्य से इसके परिणाम भी अच्छे नहीं रहे

अंतरराष्ट्रीय बाजार खासतौर पर अमेरिकी बाजार, पिछले 2 महीनों में भारतीय बाजारों के मुकाबले कहीं ज्यादा गिरे हैं। तो अब हर किसी के दिमाग में यह सवाल है कि अंतरराष्ट्रीय निवेश में गलती कहां हुई थी?
इस सवाल का जवाब आसान नहीं हैं। इसकी शुरुआत आसान जवाब से करते हैं। अंतराराष्ट्रीय डायवर्सिफिकेशन एक बहुत कठिन और जटिल प्रक्रिया है। व्यावहारिक रूप से इसका कोई सीधा या आसान तरीका नहीं है। 

इसी एक मार्केट का ETF या फीडर फंड खरीदना सही मायने में डॉलर एक्स्पोज़र से अलग कोई सही डायवर्सिफिकेशन नहीं देते हैं।

विदेशी शेयर बाजार में निवेश करने का कोई आसान तरीका नहीं है। आइए हम जानते हैं कि विदेश बाजार में निवेश करने के लिए कौन-कौन से विकल्प हैं।

फीडर फंड के जरिए

अंतराराष्ट्रीय निवेश का सबसे आसान तरीका लोकल फंड हाउस के जरिए अलग-अलग अंतरराष्ट्रीय फंडों के फीडर फंड में निवेश करना है।

फीडर फंड की मुश्किल

सबसे पहले, इन फीडर फंड्स से आपको असल डायवर्सिफिकेशन नहीं मिलता है। अब, आपने एक के बजाय दो बाजारों में निवेश किया है पर इससे डायवर्सिफिकेशन नहीं मिलता। ये फीडर फंड्स का खर्च यानी एक्सपेंस रेशियो  2-3% के लगभग होता है जो कि असल में काफी अधिक है।
इस खर्च का अनुपात इतना ज्यादा इसलिए है क्योंकि विदेश के फीडर फंड बेचने वाले भारतीय फंड हाउस को बिना किसी काम के फीस मिल मिलती है। आप अपने फंड पर घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों फंड मैनेजर को फीस देते हैं। साथ ही आपके फीडर फंड को लेकर घरेलू फंड मैनेजरों की कोई जवाबदेही नहीं होती है। क्योंकि असल निवेश प्रबंधन तो न्यूयॉर्क या लंदन में बैठा कोई व्यक्ति या फंड हाउस कर रहा होता है। घरेलू इकाई महज एक मध्यस्थ होती है। 

इंटरनेशनल एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स (ETF) खरीदना

इंटरनेशनल मार्केट में निवेश करने का यह सबसे पॉपुलर तरीका है। फीडर फंड्स की तुलना में इसकी एक बात अच्छी होती है कि इसकी कॉस्ट/लागत कम होती है। 

अब सवाल यह है कि निवेशक कैसे तय करता है कि कौन सा ETF खरीदना है? 

इन ETF के माध्यम से किन बाजारों में निवेश करना है? 

वह रिस्क और रिटर्न को कैसे संतुलित करें?

बाजार और अलग-अलग ऐसेट क्लासेस का एक सही पोर्टफोलियो बनाने के क्या मायने हैं और यह कैसे तय करें?

ETF निवेश जानकार निवेशकों के लिए ही ठीक काम करते हैं या कर सकते हैं क्योंकि सबसे अहम यह फैसला रहता है कि किस समय और किस अनुपात में कौन सा ETF खरीदना है। 

और जहां तक अलग-अलग अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के शेयर या अन्य सिक्योरिटीज खरीदने का संबंध है वह आम निवेशकों के बस की बात नहीं है क्योंकि इसमें बड़े पैमाने पर जोखिम और अस्थिरता हो सकती है।

याद रखें, विश्व स्तर पर, अमेरिका सहित, स्टॉक समय-समय पर 20-50% तक गिर जाते हैं। यह गिरावट तब भी आ सकती है जब उनके नतीजे पूर्व अनुमान से थोड़ा भी कम आए।

अंतरराष्ट्रीय डायवर्सिफिकेशन का सही तरीका क्या है?

ऊपर बताए गए कोई भी तरीका सही अंतरराष्ट्रीय डायवर्सिफिकेशन नहीं देता है। ओके सभी रास्तों की अपने-अपने समस्यायें हैं।

अंतरराष्ट्रीय निवेश के लिए और डायवर्सिफिकेशन के लिए एक ही सही रास्ता है और वह है टॉप डाउन ऐसेट एलोकेशन का, यानी कि सही तरीके से एसेट्स का आवंटन करना।
बिना इस बात को समझे और व्यवहार में लाए केवल एक फीडर फंड या एक्सचेंज ट्रेडेड फंड में निवेश भी कितना खतरनाक हो सकता है। नैस्डेक के हाल के प्रदर्शन से यह साफ है जब पिछले 1 महीने के भीतर ही अधिकांश शेयर 40-50% नीचे आ गए। 

गौर करने की बात यह है कि किसी भी समय किसी ना किसी एसेट क्लास में तेजी होती है। मसलन, 1998 में टेक्नोलॉजी, 2004-07 तक इमर्जिंग मार्केट्स, 2003-08 तक कमोडिटी, 2009 से फिक्स्ड इनकम। जबकि इस दौरान बाकी एसेट क्लास में सुस्ती रहती है।
अंतरराष्ट्रीय निवेश करने के लिए आप जिस फंड मैनेजर को चुने उसमें यह क्षमता होनी चाहिए कि वह अलग अलग ऐसेट क्लासेस जैसे अंतर्राष्ट्रीय इक्विटी, फिक्स्ड इनकम, कमोडिटी इत्यादि को समझ कर पोर्टफोलियो बना सके। 

इससे भी अहम बात है कि आपके फंड मैनेजर के पास इन आवंटन को उस समय की स्थिति अनुसार मैनेज करने का कौशल होना चाहिए। यानी जो पोर्टफोलियो बनाया है उसको समय-समय पर कैसे चेंज करें और आवंटित करें। अगर वह सही तरीके से आवंटन नहीं करते तो भी आपका नुकसान होना तय है।

अंतिम लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात है कि फंड मैनेजर ऐसा होना चाहिए जो आपकी आवश्यकताओं को समझे और आपके निवेश की योजना बनाने के लिए स्थानीय रूप से उपलब्ध हो बजाय इसके की निवेश प्रबंधन की प्रक्रिया आप से हजारों मील दूर हो जिसके बारे में आपको सीधे-सीधे कुछ पता भी नहीं लगा सके।

देविना मेहरा  की डेस्क से

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(यह लेख सबसे पहले मनीकंट्रोल Moneycontrol में प्रकाशित हुआ था)

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